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त्या न्व१॒॑श्विना॑ हुवे सु॒दंस॑सा गृ॒भे कृ॒ता । ययो॒रस्ति॒ प्र ण॑: स॒ख्यं दे॒वेष्वध्याप्य॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tyā nv aśvinā huve sudaṁsasā gṛbhe kṛtā | yayor asti pra ṇaḥ sakhyaṁ deveṣv adhy āpyam ||

पद पाठ

त्या । नु । अ॒श्विना॑ । हु॒वे॒ । सु॒ऽदंस॑सा । गृ॒भे । कृ॒ता । ययोः॑ । अस्ति॑ । प्र । नः॒ । स॒ख्यम् । दे॒वेषु । अधि॑ । आप्य॑म् ॥ ८.१०.३

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:10» मन्त्र:3 | अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:34» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:3


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शिव शंकर शर्मा

राजा का कर्तव्य कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (सुदंससा) जो शोभनकर्मा आश्चर्यकर्म करते हैं, पुनः (गृभे+कृता) जो प्रजाओं के क्लेशों के दूर करने के लिये नियुक्त हैं, (त्या) उन सुप्रसिद्ध (अश्विना) मित्रभूत राजा और अमात्यादिवर्ग को (नु) प्रेम से यज्ञ में (हुवे) बुलाता हूँ। हे मनुष्यों ! (ययोः) जिनके साथ (नः) हम प्रजाओं की (सख्यम्) मैत्री (प्र+अस्ति) अच्छे प्रकार विद्यमान है और जिनका यश या सख्य (देवेषु+अधि) कार्यकुशल पुरुषों में (आप्यम्) प्रसिद्ध है, ऐसे राजा और अमात्यादिवर्ग को यज्ञ में जैसे मैं बुलाता हूँ, आप लोग भी उन्हें बुलाया करें ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो आश्चर्यकर्मों को कर्ता और प्रजाओं के क्लेशहर हैं, जिनके साथ प्रजाओं की मैत्री होती है और जिनका यश सर्वत्र प्रख्यात हो जाता है, वे माननीय हैं ॥३॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सुदंससा) शोभन कर्मवाले (गृभे) प्रजा का संग्रह करने के लिये (कृता) सम्राट् द्वारा निर्मित (त्या, अश्विना) उन सेनापति तथा सभाध्यक्ष को (हुवे, नु) आह्वान करते हैं, (ययोः, सख्यम्) जिनकी मित्रता (देवेषु) सब देवों के मध्य में (नः) हमको (अधि) अधिक (प्राप्यम्, अस्ति) प्राप्तव्य है ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे वैदिककर्म करनेवाले सभाध्यक्ष तथा सेनाध्यक्ष ! हम लोग आपके साथ मैत्रीपालन करने के लिये आपका आह्वान करते हैं। आप हमारे यज्ञ में आकर प्रजापालनरूप शुभकर्मों में योग दें, ताकि हमारा यज्ञ सर्वाङ्गपूर्ण हो ॥३॥
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शिव शंकर शर्मा

राजकर्त्तव्यमाह।

पदार्थान्वयभाषाः - सुदंससा=सुदंससौ=शोभनकर्माणौ=आश्चर्य्यकर्माणौ। दंस इति कर्मनाम। शोभनानि दंसांसि ययोस्तौ। पुनः। गृभे=प्रजानां क्लेशान् ग्रहीतुं दूरीकर्त्तुम्। कृता=कृतौ=नियुक्तौ। त्या=त्यौ=प्रसिद्धौ। अश्विना= मित्रभूतौ राजानौ। अद्याहमनु=प्रेम्णा। हुवे=आह्वयामि= निमन्त्रयामि। हे मनुष्याः ! ययोः=याभ्यां सह। नः=अस्माकम्। सख्यम्=मैत्रीम्। प्रास्ति=सम्यग् विद्यते। पुनः। ययोः सख्यम्। देवेषु+अधि=कार्य्यकुशलानां मध्ये। आप्यम्=प्रसिद्धमस्ति। ईदृशौ राजानौ सदानिमन्त्रयितव्यौ ॥३॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सुदंससा) शोभनकर्माणौ (गृभे) प्रजासंग्रहाय (कृता) सम्राजा निर्मितौ (त्या, अश्विना) तौ अश्विनौ (हुवे, नु) ह्वयामि हि (ययोः, सख्यम्) ययोर्मैत्री (देवेषु) देवेषु मध्ये (नः) अस्माकम् (अधि) अधिकं (प्राप्यम्) प्राप्तव्यम् (अस्ति) भवति ॥३॥